
भाप से बिजली तक आईआईटी मद्रास स्टार्टअप का वैश्विक सफर शुरू
ऊर्जा की बर्बादी हमारे चारों ओर है, पर अक्सर हम इसे देख नहीं पाते। औद्योगिक क्षेत्रों में हर दिन लाखों टन भाप का उत्पादन होता है, लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा बिना उपयोग के नष्ट हो जाता है। इस बर्बादी को अगर ऊर्जा में बदला जाए तो यह न सिर्फ उद्योगों का खर्च घटाएगा, बल्कि धरती को भी स्वच्छ बनाएगा। यही सोच लेकर आईआईटी मद्रास से निकले स्टार्टअप वांकेल एनर्जी सिस्टम्स ने एक नया अध्याय रचा है।
हाल ही में इस डीप-टेक स्टार्टअप ने प्रि-सीड फंडिंग राउंड में एक मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए हैं। इस निवेश का नेतृत्व Shastra VC ने किया है, साथ ही कई रणनीतिक एंजेल इन्वेस्टर्स ने भी इसमें हिस्सा लिया। यह सफलता केवल पैसों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय नवाचार की वैश्विक पहचान का प्रतीक है।
भाप से बिजली तक की यात्रा
भारत में 45,000 से अधिक औद्योगिक बॉयलर हर साल 1.26 बिलियन टन से अधिक भाप उत्पन्न करते हैं। इनका बड़ा हिस्सा प्रेशर रिड्यूसिंग वाल्व (PRVs) से होकर गुजरता है। ये वाल्व भाप के दबाव को नियंत्रित तो करते हैं, लेकिन उसमें छिपी हुई अपार ऊर्जा को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं।
इसी समस्या का हल है वांकेल एनर्जी का फीनिक्स एक्सपैंडर। यह एक अनोखा रोटरी उपकरण है, जो उसी व्यर्थ ऊर्जा को पकड़कर उसे स्वच्छ बिजली में बदल देता है। खास बात यह है कि इसके लिए किसी मौजूदा संयंत्र में बदलाव की भी ज़रूरत नहीं होती।
आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ
हर फीनिक्स एक्सपैंडर यूनिट की लागत मात्र 6 से 24 महीनों में निकल आती है और उसके बाद यह सालाना 50 लाख रुपये तक की बचत दिलाता है। इतना ही नहीं, हर एक यूनिट सालाना 180 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भी घटाती है। यानी यह मशीन सिर्फ मुनाफे का साधन नहीं है, बल्कि धरती को भी राहत देती है।
प्रोफेसरों से स्टार्टअप तक
इस तकनीक की नींव आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं और प्रोफेसरों ने रखी। शुरुआत में यह केवल एक विचार था, जिसे सरकार और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) से मिले समर्थन ने आकार दिया। कई डिज़ाइन बदलावों और सालों की मेहनत के बाद आखिरकार यह दुनिया का सबसे कुशल स्टीम एक्सपैंडर बनकर सामने आया।
प्रो. सत्यानारायण शेषाद्रि, सह-संस्थापक और सलाहकार, बताते हैं: “भाप उद्योगों की रीढ़ है, लेकिन उसकी असली क्षमता अब तक अधूरी रही है। फीनिक्स एक्सपैंडर उस क्षमता को वास्तविक ऊर्जा में बदलने का एक क्रांतिकारी साधन है।”
वैश्विक पहचान और आगे की राह
वांकेल एनर्जी को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल रही है। एमआईटी Climate & Energy Prize में यह स्टार्टअप फाइनलिस्ट बना और इतिहास में पहली बार कोई भारतीय कंपनी इस मुकाम तक पहुँची।
स्टार्टअप का लक्ष्य अगले कुछ महीनों में अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रों में कम से कम छह फीनिक्स एक्सपैंडर तैनात करना है। शुरुआत तमिलनाडु से होगी, ताकि नज़दीकी सहायता दी जा सके, और फिर पूरे भारत व वैश्विक बाज़ारों में विस्तार होगा।
भविष्य में वांकेल केवल भाप तक सीमित नहीं रहना चाहता। इसकी दृष्टि रेफ्रिजरेंट्स, अमोनिया, हाइड्रोजन और एयर सिस्टम्स तक फैली है। साथ ही यह अगली पीढ़ी के कॉम्पैक्ट कंप्रेसर भी लाने की योजना बना रहा है। यानी यह सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, बल्कि एक संपूर्ण टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
वांकेल एनर्जी सिस्टम्स की कहानी दिखाती है कि भारतीय युवा और वैज्ञानिक मिलकर विश्वस्तरीय समाधान तैयार कर सकते हैं। यह स्टार्टअप न केवल उद्योगों के लिए बचत और लाभ का जरिया है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी उम्मीद की किरण है। फीनिक्स एक्सपैंडर का सफर हमें याद दिलाता है कि हर बर्बाद ऊर्जा को उपयोगी बनाया जा सकता है—जरूरत सिर्फ सही दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प की है।
डिस्क्लेमर: यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सूचना साझा करना है। किसी भी निवेश या व्यावसायिक निर्णय के लिए आधिकारिक स्रोतों और विशेषज्ञों की सलाह लेना आवश्यक है।