
रूसी उद्योगों में छाई मंदी की छाया
रूस की औद्योगिक दिग्गज कंपनियां संकट खड़ी है जहाँ उसकी युद्ध-प्रधान नीति और बाहरी प्रतिबंधों ने औद्योगिक जगत को हिला कर रख दिया है। रेलवे, ऑटोमोबाइल, कोयला, सीमेंट, हीरा और धातु उद्योग जैसे बड़े क्षेत्र इस समय गंभीर आर्थिक दबाव झेल रहे हैं। कई दिग्गज कंपनियां अपने कर्मचारियों को फर्लो (Furlough) पर भेज रही हैं या काम के घंटे घटा रही हैं, ताकि बेरोजगारी की दर तो न बढ़े, लेकिन खर्च में कटौती हो सके।
यह संकट न केवल उद्योगों की गति को धीमा कर रहा है, बल्कि उन लाखों परिवारों की रोज़ी-रोटी पर भी असर डाल रहा है जो वर्षों से इन कारखानों पर निर्भर हैं।
घटती मांग और विदेशी दबाव से जूझता उद्योग
रूस की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी Cemros ने निर्माण क्षेत्र में आई गिरावट और चीन, ईरान व बेलारूस से बढ़ते आयात के कारण अपने कर्मचारियों के लिए चार-दिवसीय कार्य सप्ताह लागू किया है। कंपनी के प्रवक्ता सर्गेई कोश्किन ने इसे “आवश्यक एंटी-क्राइसिस कदम” बताया, ताकि 13,000 कर्मचारियों की नौकरियां सुरक्षित रह सकें।
इसी तरह, रूसी रेलवे (Russian Railways), जिसके लगभग 7 लाख कर्मचारी हैं, ने अपने मुख्य कार्यालय के कर्मचारियों से कहा है कि वे हर महीने तीन अतिरिक्त दिन बिना वेतन छुट्टी लें। कोयला, धातु और तेल के परिवहन में कमी के कारण रेलवे की आय में भी गिरावट आई है।
प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियां जैसे GAZ, Kamaz और Avtovaz ने भी काम के दिनों में कटौती की है। ये कंपनियां रूस की औद्योगिक पहचान रही हैं, लेकिन अब ये उत्पादन घटा रही हैं ताकि वेतन खर्च को सीमित किया जा सके।
कोयला और धातु उद्योग पर सबसे बड़ा असर
रूस का कोयला क्षेत्र, जो करीब 1.5 लाख लोगों को रोजगार देता है, इस समय गंभीर संकट में है। Deputy Prime Minister अलेक्जेंडर नोवाक ने खुद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बताया था कि 30 से अधिक कोयला कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं।
साइबेरिया के कुज़बास (Kuzbass) क्षेत्र में 18 से अधिक कोयला उद्यम पहले ही बंद हो चुके हैं, जिससे हजारों खनिक बेरोजगार हो गए हैं। एक खनिक, व्लादिमीर, ने बताया कि उनकी तनख्वाह में कटौती की गई है। “मैं अब ऊँचे पद पर हूँ, लेकिन पहले से कम कमा रहा हूँ,” उन्होंने कहा, “कोयले की मांग इतनी घट गई है कि हर जगह वेतन घटाए जा रहे हैं।”
धातु उद्योग में भी हालात अच्छे नहीं हैं। रूस दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है, लेकिन घरेलू मांग में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने इस क्षेत्र की रफ्तार धीमी कर दी है। अब सरकार इस्पात उद्योग में दिवालियापन पर अस्थायी रोक (Moratorium) लगाने पर विचार कर रही है ताकि बड़े पैमाने पर छंटनी को रोका जा सके।

सरकारी समर्थन के बावजूद संकट गहराता जा रहा है
रूसी सरकार पहले भी कठिन समय में बड़े उद्योगों को बचाने के लिए हस्तक्षेप करती रही है। 2008 की वैश्विक मंदी हो या 2022 का युद्धकाल, सरकार ने कंपनियों को वित्तीय सहायता और टैक्स में छूट देकर रोजगार बचाने की कोशिश की। लेकिन इस बार स्थिति कहीं ज्यादा जटिल है।
उच्च ब्याज दरें, मज़बूत रूबल, घटता घरेलू उपभोग, और सस्ते चीनी उत्पादों की बाढ़ ने रूस की अर्थव्यवस्था को भीतर से कमजोर कर दिया है। भले ही बेरोजगारी की दर आधिकारिक तौर पर 2.1% बताई जा रही हो, लेकिन असल में लाखों कामगारों की आय में कटौती और रोजगार के अवसरों की कमी से सामाजिक असंतोष बढ़ रहा है।
पुतिन की चुनौती: धीमी अर्थव्यवस्था और जनता की उम्मीदें
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार करने से इनकार किया है कि रूस की अर्थव्यवस्था ठहराव की स्थिति में है। उनका कहना है कि सरकार जानबूझकर अर्थव्यवस्था की गति नियंत्रित कर रही है ताकि मुद्रास्फीति (Inflation) को काबू में रखा जा सके, जो इस वर्ष लगभग 6.8% तक पहुंच सकती है।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर गैर-सैन्य क्षेत्रों में उत्पादन गिरता रहा, तो GDP वृद्धि दर मात्र 1% तक सीमित रह जाएगी। इस स्थिति में रूस के पास सीमित विकल्प हैं — या तो वह अपने उद्योगों को राहत पैकेज दे, या फिर बेरोजगारी की लहर का सामना करे।
निष्कर्ष: मजदूरों के लिए कठिन समय, भविष्य अनिश्चित
रूस की औद्योगिक ताकत कभी उसकी आर्थिक नींव मानी जाती थी, लेकिन अब यही क्षेत्र संकट की गिरफ्त में हैं। कंपनियां कर्मचारियों को बचाने की कोशिश में काम के दिन घटा रही हैं, जबकि सरकार इस स्थिति को “संभाले हुए” दिखाने की कोशिश कर रही है।
पर सच्चाई यह है कि जब उत्पादन रुकता है और मजदूरों की आय घटती है, तब किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का मनोबल कमजोर होता है। रूस के मजदूर अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि हालात सुधरेंगे, लेकिन फिलहाल यह संघर्ष उनके लिए लंबा और कठिन दिख रहा है।
अस्वीकरण (Disclaimer):
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