
मोबाइल की लत से बच्चों की आंखें खतरे में!? डॉक्टरों ने दी आंखों को लेकर बड़ी चेतावनी
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। स्कूल के असाइनमेंट हों, ऑनलाइन क्लासेस या मनोरंजन के पल—सब कुछ अब एक छोटे-से स्क्रीन में सिमट गया है। लेकिन जब बच्चे इस स्क्रीन से नज़रें नहीं हटा पाते, तब यह आदत एक गंभीर खतरे का रूप ले सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि फोन की लत बच्चों की आंखों को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचा रही है, और कई बार यह नुकसान तब तक पता नहीं चलता जब तक बहुत देर न हो जाए।
नई दिल्ली स्थित नेत्रा आई सेंटर की कंसल्टेंट और नेत्र सर्जन डॉ. प्रियंका सिंह ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक मोबाइल या टैबलेट पर समय बिताने से बच्चों में मायोपिया (नज़दीक की चीज़ साफ़ दिखना, दूर की धुंधली होना), स्क्विंट (भेंगापन) और लेज़ी आई (कमज़ोर आंख) जैसी गंभीर समस्याएँ बढ़ रही हैं।
बच्चों की आंखों पर स्क्रीन का असर
डॉ. प्रियंका के अनुसार, आजकल बच्चे बहुत छोटी उम्र में ही चश्मा लगवा रहे हैं। पहले जहां मायोपिया किशोरावस्था में देखा जाता था, अब यह 6–7 साल के बच्चों में भी आम होता जा रहा है। इसका कारण है बाहर खेलने का समय कम होना और स्क्रीन के बहुत पास लंबे समय तक रहना। आंखें लगातार नज़दीक की चीज़ों पर केंद्रित रहती हैं, जिससे उनकी फोकस करने की क्षमता पर असर पड़ता है।
इसी तरह, बहुत अधिक स्क्रीन देखने से स्क्विंट (भेंगापन) की समस्या भी बढ़ रही है। इस स्थिति में आंखें एक साथ काम नहीं कर पातीं और धीरे-धीरे उनका संतुलन बिगड़ने लगता है। अगर समय रहते इलाज न हो, तो यह स्थायी समस्या बन सकती है।
एक और खतरनाक असर है लेज़ी आई (Amblyopia)। यह तब होता है जब एक आंख दूसरी के मुकाबले कमज़ोर हो जाती है और मस्तिष्क उस आंख से आने वाले संकेतों को नज़रअंदाज़ करने लगता है। छोटे बच्चों में यह स्थिति आम हो रही है क्योंकि वे बहुत समय मोबाइल स्क्रीन पर बिताते हैं। अगर इसे शुरुआती दौर में न पहचाना जाए, तो जीवनभर दृष्टि पर असर पड़ सकता है।
स्क्रीन टाइम से जुड़ी अन्य समस्याएं
फोन और टैबलेट की स्क्रीन लगातार देखने से बच्चों की आंखों में सूखापन, जलन और लालपन भी हो सकता है। लंबे समय तक स्क्रीन के संपर्क में रहने से एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस (आंखों में खुजली और पानी आना) जैसी एलर्जी की शिकायत भी बढ़ जाती है।
माता-पिता क्या कर सकते हैं?
हर माता-पिता अपने बच्चे को खुश और सुरक्षित देखना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए थोड़ी जागरूकता और अनुशासन ज़रूरी है। डॉक्टरों का सुझाव है कि बच्चों को एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर भोजन देना चाहिए—जैसे हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, फल और मेवे। ये आंखों को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
साथ ही, स्क्रीन टाइम पर सख्त नियंत्रण बहुत ज़रूरी है।
- 2 साल से छोटे बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन नहीं दिखानी चाहिए।
- 2 से 5 साल के बच्चों के लिए अधिकतम 1 घंटा पर्याप्त है।
- 5 साल से बड़े बच्चे भी 1.5 से 2 घंटे से ज़्यादा स्क्रीन न देखें।
टीवी स्क्रीन मोबाइल की तुलना में बेहतर है, क्योंकि वह दूर होती है और आंखों पर कम दबाव डालती है।
संकेत जो बताते हैं कि बच्चे की आंखों पर असर हो रहा है
अगर आपका बच्चा बार-बार आंखें मसलता है, टीवी बहुत पास बैठकर देखता है, या बार-बार कहता है कि उसे चीज़ें धुंधली दिख रही हैं — तो यह आंखों में परेशानी के शुरुआती संकेत हो सकते हैं। ऐसे में तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करें।
नियमित आंखों की जांच भी बहुत ज़रूरी है। डॉक्टर सलाह देते हैं कि बच्चे की आंखों की पहली जांच 3–4 साल की उम्र में और उसके बाद हर साल करवानी चाहिए।
स्क्रीन की जगह प्यार और साथ दें
आज की व्यस्त जिंदगी में बच्चों को मोबाइल देकर चुप कराना आसान लगता है, लेकिन यही लत आगे चलकर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। कोशिश करें कि परिवार के साथ समय बिताएं — कहानियाँ सुनाएँ, खेल खेलें या साथ में ड्रॉइंग करें। यह न केवल बच्चे की आंखों को बल्कि उसके भावनात्मक स्वास्थ्य को भी मजबूत बनाएगा।
निष्कर्ष
बच्चों की आंखें नाज़ुक होती हैं और वही उनकी दुनिया देखने का ज़रिया हैं। मोबाइल की बढ़ती लत इस कीमती तोहफे को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचा रही है। डॉ. प्रियंका सिंह कहती हैं कि यदि समय रहते सावधानी नहीं बरती गई, तो यह नुकसान स्थायी हो सकता है। इसलिए अभी से सतर्क रहें, नियम बनाएं और बच्चों को स्क्रीन से थोड़ा दूर रहने की आदत डालें।
आपके बच्चे की आंखें अमूल्य हैं — आज उनकी रक्षा करें ताकि कल उनकी दुनिया और भी खूबसूरत दिखे।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य जागरूकता के उद्देश्य से लिखी गई है। यह किसी चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं है। आंखों से संबंधित किसी भी समस्या या उपचार के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श करें।